विचार कीजिए – जब आप पीड़ित की कतार में होगें तब यह लेख याद आयेगा।आप सब को सही लगें तो सेयर अवश्य करें।👏👏👏👏👏
पत्रकार हो रहें प्रताडित, धरने पर बैठे बेरोजगार स्नातक शिक्षित छात्रों पर लाठी चार्ज से प्रताडित, किसान कानून के खिलाफ खडें किसानों को प्रताडित करना, क्या याद दिला रहा हैं। विचार कीजिए क्या इन वर्गों का हिंदू, मुस्लिम में वर्गीकरण किया जा सकता हैं। क्या सरकारें इनको दो चश्में से देख सकती हैं। मेरा मानना हैं कभी नहीं। जबकी ये सभी हर धर्म वर्ग से आये लोगो का समूह ही हैं। आज उत्तर प्रदेश सरकार के लगभग 4.5 साल होने को आये हैं। सबसे ज्यादा खबरें हिंदू – मुस्लिम में बाट कर ही परोसी गयी। आज के दौर में शाम 4 बजें से 10 बजें तक समाज को दो वर्गों में बाट कर ही खबरो को दिखाया गया है। इन मुद्दों के होने से हमारा क्या नुकसान हुआ यह हम कभी जान ही नहीं सकें। क्यूँ , क्योंकि कभी इसपर एक समाज के रूप से विचार ही नहीं किया गया। समाज कभी सरकार से सवाल नहीं पूछ पायी न पत्रकारों के माध्य से, न छात्रों की आवाज सरकार के दरवाजे तक जा पायी, न किसानों का विरोध देखना चाहती है सरकार। सरकार को जब जवाब देना नहीं हैं तो जो भी करेगी वह सब अच्छा ही लगेगा। जब छात्र पिटें तब सब हसें। जब किसान रूठे तब सब हसें। जब पत्रकारों पर वार हुऐ तो लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ के मुख्य कार्यकारी कुछ नहीं कह पाये वह हसने के बराबर ही हैं। सब एक दूसरे पर हस रहें हो तो सरकार को क्या पडी की वो समाज के सरोकार के लिए कुछ करें। आज के दौर में सरकार का एक ही काम हैं कैसे ठेके बाटे जाँये कौन कितना वापस करेगा। कौन को कहा नियुक्ति देनी हैं जो हमारे को जनता से संरक्षण दे सकें। यह वह दौर हैं जब विरोध की आवाज कमजोर कर के सरकार चलायी जा रही हैं। न की अपने जन कामों को करके सरकार में रह सकें। दमन के बाद क्या होगा ?
जमीदारी प्रथा का आरम्भ होगा साथियों। जी हा वयवस्था ऐसी ही बनायी जा रही हैं की जमीदारी प्रथा को वापस लाया जा सकें। ऐसी प्रथा में आप कुछ भी कहेंगें कोई सुनने वाला न होगा जिसके पास अधिकार होगा वह अपने अधिकार पूंजीपति को समर्पित कर देंगे। यह ठेकेदारी के केंद्रीयकरण के कारण होगा। न न्यायालय का मान होगा न ऐसी व्यवस्था होगी की आप न्याय के दरवाजे तक जा सकें। यह तब होगा जब लोग शिक्षित हो चुके होंगे। सरकार ऐसे कदम क्यों उठा रही हैं – सरकार को पता हैं कि कैसे वापस आना हैं। सरकार के वापस आने के रास्ते में जनता के मत का उपयोग ही नहीं हैं तो क्या चिंता करनी हैं। बस अपनी सरकारी ताकत की हनक दिखती रहें यही उद्देश्य हैं।
आज जनता मे से कई लोग भी यही देखते हैं किसके पास ताकत ज्यादा हैं, बस उसके साथ हो लेते हैं नही पता है कि कब वही ताकत उसके खिलाफ भी इस्तेमाल हो जायें। यही कमजोरी समाज के लिए घातक रूप ले रही हैं। लोग विचारो पर कम और ताकत को तरहीज देने लगें हैं। जब तक प्रत्येक व्यक्ति अपनी समझ से शालीन और विचारक के तौर पर नही सोचेगा तब तक वह वापस आपसी भाईचारे के समाज में नहीं लौट सकता।
विचार कीजिये आप को क्या चाहिए – स्वस्थ समाज या एक ऐसा समाज जहाँ एक को मरता देख दूसरो हँसे । समाजवाद या पूँजीवाद , समाजवाद में भी पूँजी होती हैं उस पूँजी का विकेंद्रीयकरण होता है। और पूँजीवाद में किसी व्यक्ति, वर्ग के पास ही ज्यादातर पूँजी होती हैं। वह अपने हित के अनुसार ही पूँजी का लेनादेना करता हैं। जिसमे सामाजिक सरोकार का कोई स्थान नहीं होता। इन्ही कारको के कारण आज जब एक व्यक्ति या वर्गा पीडित होता हैं तो दूसरा हँसता हूआ ही दिखता हैं। ठेकेदारी व्यवस्था के कारण ही अभी ऐंम्बूलेंस कर्मचारी भी धरने पर बैंठे है वह भी ठेकेदारी प्रथा का विरोध कर रहें हैं। हर जगह ठेकेदारी व्यवस्था कभी कारगर नहीं हो सकती ।। आप सभी भी विचार कीजिए। एसमें सब का मतलब वह ज्यादातर लोग जिनके पास प्रभाव था सरकार के खिलाफ बोलने का वो सब चुप रहें। जय हिंद जय भारत । विचार कीजिए का । 👏👏👏👏👏